मेरे जीवन का लक्ष्य पर निबन्ध

मेरे जीवन का लक्ष्य

प्रस्तावना

प्रत्येक व्यक्ति की कोई आकांक्षा होती है। होश संभालने के साथ वह कुछ बनने की बात सोचने लगता है, उसकी आंखों में कुछ सपने पलने लगते हैं , जिन को साकार करने के लिए व कठोर परिश्रम करता है।

साधनों की पहचान-व्यक्ति अपने जीवन का लक्ष्य अपनी शारीरिक,बौद्धिक और मानसिक योग्यता और रुझान केअनुरोध करता है और यह आवश्यक भी है। इस दिशा में मुझे बच्चन जी की कविता की पंक्तियां याद आती है-

पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले। कौन कहता है कि सपनों को ना आने दे ह्रदय में, देखते सब हैं इन्हें अपने समय में ,अपनी उम्र में। स्वप्न पर ही मुग्ध मत हो सत्य का भी ज्ञान कर ले।

और इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए मैंने एक पुलिस अधिकारी बनने का निश्चय किया है।

पुलिस अधिकारी के रूप में मेरा स्वप्न-

मैं एक पुलिस अधिकारी बनकर अपने समाज के लिए बहुत कुछ करना चाहती हूं। मैं इस समाज को भय मुक्त कराना चाहती हूं। भारत की पुलिस सेना का नाम सुनते ही अपराधियों के रोंगठे खड़े हो जाएं। यदि सभी परिस्थितियां मेरा साथ देती हैं और मैं एक बड़ी पुलिस अधिकारी बनती हूं तो हमारे देश को मैं फिर से सोने की चिड़िया में बदल दूंगी जहां शत्रु हमारे देश की ओर आंख उठाकर भी ना देख पाएंगे। मैं सोचती हूं कि अपनी मातृभूमि के प्रति देश प्रेम की भावना रखने वालों का लक्ष महान होता है।

जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं। वह हृदय नहीं पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं। “

उपसंहार

मैं एक पुलिस अधिकारी के रूप में अपने देश के लिए जो कुछ संभव हुआ, वह करने को तैयार हूं। इसी बात पर मुझे कवि श्री माखनलाल चतुर्वेदी की कविता ‘फूल की अभिलाषा’ की याद आ गई जिसमें एक फूल कहता है-

हे माली! मुझे तोड़कर उस मार्ग पर फेंक देना जिस राह से मातृभूमि पर शीश चढ़ाने वाले उनके वीर जा रहे हों।

Please follow and like us:

Leave a comment