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Who does not enjoy a juicy burger or a saucy pizza? Give a child a packet of chips or a can of fizzy drink and the child stops bothering the parents! When children do not finish the roti-subzi of their tiffin, instant noodles is the easiest solution!
Though junk food might be an easy solution to numerous problems, it may be breaking down the health of your child behind your back. This type of food is extremely hazardous to child health and leads to long term medical issues.
Given our current lifestyle, children do not get enough physical activity or outdoor play. Added to that is the huge calorie intake from fast and ready-to-eat food. This is why child obesity is a household problem in our country today.
Junk food might be tasty but they are very low on the nutrient content. Vitamins like A and C, micronutrients or minerals such as magnesium or calcium are simply not present in such food. So regular intake might lead to deficiency diseases in children leading to early onset of medical issues like osteoporosis or dental problems.
Fast food and packaged eatables are rich in added salts and sugars. They are usually rich in carbohydrates and fats, making them extremely high-calorie. This might lead to health issues like obesity, emotional issues and other chronic illnesses. Some latest studies have even shown the relation of junk food with diseases like asthma, rhinitis, eczema etc in kids.
Such foods usually contain a lot of processed items like like processed cheese, processed meat, mayonnaise, sauces etc. They also contain harmful artificial colors, fragrances and flavours. They might also contain chemicals in the form of preservatives. Due to their attractive packaging and marketing techniques, kids become obsessed and habituated to junk food which is a leading cause of health issues in children. They should be encouraged to abstain from it.
होली
प्रस्तावना
होली हमारे देश का प्राचीन पर है। इसमें नाच- गाना के साथ रंगों की भरमार होती है। इसको रंगोत्सव भी कहा जाता है। या नए वर्ष के आगमन की सूचना देने वाला त्यौहार है। फाल्गुन का महीना बीतते-बीतते जाड़े का अंत हो जाता है। बसंत की शोभा अपने उत्कर्ष पर होती है। खेतों में फसलें अपने सुनहरे रंग में कृषकों के मन में उत्साह भर देती है। ऐसे आनंदमई वातावरण में होली का पर्व मनाया जाता है।
समय
होली का पर्व फाल्गुन मास की पूर्णिमा को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। यह मौसम बड़ा सुहावना होता है। मनोरम वातावरण में सभी लोग उमंग और मस्ती के साथ इस पर्व को मनाते हैं। इस समय तक ऋतुराज बसंत का आगमन हो जाता है। चारों और खेतों मैं सरसों के पीले फूल दिखाई पड़ते हैं। प्रकृति का रंगीन वातावरण नई उमंगे लेकर आता है। भारतीयों ने इस रंगीन मौसम में होली का त्यौहार मनाना आरंभ किया। इसीलिए इसे ‘रंगोत्सव’ भी कहा जाता है।
मनाने का कारण
भारतीय त्योहारों को मनाने के पीछे कोई न कोई कारण अवश्य होता है। लोक में प्रचलित है कि राजा हिरण्यकश्यप बड़ा प्रतापी राजा था, किंतु उतना ही अहंकारी भी। वह भगवान का सदैव विरोध करता था। स्वयं को ईश्वर से बड़ा मानता था। वह चाहता था कि प्रजा उसकी पूजा करे। उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान का भक्त था। प्रह्लाद को बाल्यकाल मैं सच – झूठ की पहचान हो गई थी। प्रह्लाद ने कहा था – “भगवान से बढ़कर कोई दूसरा नहीं हो सकता। माता-पिता आदर के पात्र हैं परंतु भक्ति केवल भगवान की ही हो सकती है।”
इससे राजा हिरण्यकश्यप अपने पुत्र से नाराज हो गए। उन्हें पुत्र के उपदेश अच्छे नहीं लगे। वे प्रह्लाद को मारने का प्रयास करने लगे। अनेक बार असफल हो जाने के कारण उन्होंने अपनी बहन होलिका से सहायता करने को कहा। होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह अग्नि में नहीं जलेगी । होलिका अपने इस वरदान के घमंड में प्रहलाद को गोद में लेकर जलती लकड़ियों के ढेर पर बैठ गई। किंतु आग से प्रह्लाद कुशलता पूर्वक बाहर आ गए । होली का उसी आग में भस्म हो गई। इस प्रकार असत्य और अन्याय पर सत्य एवं भक्ति की विजय के उपलक्ष्य में हर वर्ष होली का पर्व मनाया जाता है।
होलिका पर जिस कारण भी प्रारंभ हुआ हो, इसमें संदेह नहीं कि वह हमारा प्राचीन पर्व है। अनेक पुराणों एवं साहित्य ग्रंथों में इसके मनाए जाने का वर्णन मिलता है। इस त्यौहार की सबसे बड़ी विशेषता इससे जुड़ा राग – रंग है। यह संपूर्ण जनता का त्यौहार है। इसमें धर्म , पूजा-अर्चना और विधि-विधान का उतना महत्व नहीं है, जितना महत्व गाने बजाने एवं अबीर- गुलाल उड़ाने, खाने-पीने का और हर एक के साथ गले मिलने का है।वास्तव में होली हमारे देश का राष्ट्रीय पर्व है
मनाने की विधि
इस पर्व का आरंभ होली के पाँच-छ्ह दिन पूर्व होली एकादशी से होता है। बच्चे इस दिन से एक-दूसरे पर रंग डालना आरंभ कर देते हैं। पूर्णिमा के दिन खुले मैदान में ईंधन व उपलों का ढेर लगाया जाता है। स्त्रियां दोपहर के समय इसका पूजन करती हैं। दिन में पकवान आदि बनाए जाते हैं। रात्रि को एक निश्चित समय पर इस में आग लगाई जाती है। इसमें सभी लोग गेहूं, जौ, चना आदि की अधपकी वाले भूनते हैं, फिर एक दूसरे से गले मिलते हैं।
होली के दूसरे दिन प्रातः काल लोग अबीर गुलाल एवं रंगों से होली खेलना प्रारंभ कर देते हैं। बच्चे पिचकारी से रंग सकते हैं तथा गुलाल लगाते हैं। गले मिलते हैं एवं अत्यंत प्रसन्नता का अनुभव करते हैं। लोग टोलियां बनाकर नाचते गाते हैं एवं मौज-मस्ती करते हैं। दोपहर बाद सब लोग स्नान कर वस्त्र धारण करते हैं। एक-दूसरे से मिलने के लिए निकल पड़ते हैं। वास्तव में होली का पर्व प्रसन्नता से मनाया जाता है।
उपसंहार
वास्तव में होली का पर्व रंगों का पर्व है। यह त्योहार प्रसन्नता एवं उमंग उत्साह उल्लास एवं सद्भावना से का पर्व है। सभी लोग गले मिलते हैं। एकता और भाईचारे को बढ़ाने वाला त्यौहार है। मनुष्यों के प्रेम और प्यार का प्रतीक है यह पर्व।
मेरे जीवन का लक्ष्य
प्रस्तावना
प्रत्येक व्यक्ति की कोई आकांक्षा होती है। होश संभालने के साथ वह कुछ बनने की बात सोचने लगता है, उसकी आंखों में कुछ सपने पलने लगते हैं , जिन को साकार करने के लिए व कठोर परिश्रम करता है।
साधनों की पहचान-व्यक्ति अपने जीवन का लक्ष्य अपनी शारीरिक,बौद्धिक और मानसिक योग्यता और रुझान केअनुरोध करता है और यह आवश्यक भी है। इस दिशा में मुझे बच्चन जी की कविता की पंक्तियां याद आती है-
“पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले। कौन कहता है कि सपनों को ना आने दे ह्रदय में, देखते सब हैं इन्हें अपने समय में ,अपनी उम्र में। स्वप्न पर ही मुग्ध मत हो सत्य का भी ज्ञान कर ले।”
और इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए मैंने एक पुलिस अधिकारी बनने का निश्चय किया है।
पुलिस अधिकारी के रूप में मेरा स्वप्न-
मैं एक पुलिस अधिकारी बनकर अपने समाज के लिए बहुत कुछ करना चाहती हूं। मैं इस समाज को भय मुक्त कराना चाहती हूं। भारत की पुलिस सेना का नाम सुनते ही अपराधियों के रोंगठे खड़े हो जाएं। यदि सभी परिस्थितियां मेरा साथ देती हैं और मैं एक बड़ी पुलिस अधिकारी बनती हूं तो हमारे देश को मैं फिर से सोने की चिड़िया में बदल दूंगी जहां शत्रु हमारे देश की ओर आंख उठाकर भी ना देख पाएंगे। मैं सोचती हूं कि अपनी मातृभूमि के प्रति देश प्रेम की भावना रखने वालों का लक्ष महान होता है।
“जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं। वह हृदय नहीं पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं। “
उपसंहार
मैं एक पुलिस अधिकारी के रूप में अपने देश के लिए जो कुछ संभव हुआ, वह करने को तैयार हूं। इसी बात पर मुझे कवि श्री माखनलाल चतुर्वेदी की कविता ‘फूल की अभिलाषा’ की याद आ गई जिसमें एक फूल कहता है-
‘हे माली! मुझे तोड़कर उस मार्ग पर फेंक देना जिस राह से मातृभूमि पर शीश चढ़ाने वाले उनके वीर जा रहे हों।‘
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