Category: Poems

भूल गया है क्यों इंसान

भूल गया है क्यों इंसान

सबकी है मिट्टी की काया,
सब पर नभ की निर्मल छाया,
यहाँ नहीं कोई आया है,
ले विशेष वरदान .
भूल गया है क्यों इंसान

धरती ने मानव उपजाए,
मानव ने ही देश बनाए
बहुदेशों में बसी हुई है
,
एक धरा संतान.
भूल गया है क्यों इंसान


देश अलग हैं
, देश अलग हों,
वेश अलग, वेश अलग हों,
मानव को मानव से लेकिन,
जोडे अंतर प्राण
भूल गया है क्यों इंसान

हरिवंश राय बच्चन

जल का चक्कर

जल का चक्कर

दल के दल जब बादल आते.

रिमझिम रिमझिम जल बरसाते.

ये बादल किस देश से आते?

किस नल से पानी भर लाते?

सागर की छाती के ऊपर

गरम हवाएँ जब बहती हैं.

सागर जल को भाप बनाकर

लेकर जब ऊपर उठती हैं.

तरहतरह के बादल सजते.

रंगबिरंगे बादल बनते.

हवा के रथ पर फिर चढकर वे

रिमझिमरिमझिम जल बरसाते.

बादल सागर से ही आते

बादल सागर से जल लाते

ताल तलियाँ नदियाँ भरते

खेत बगीचे सब हरसाते

मानव पशु पक्षी सब गाते

दल के दल जब बादल आते

कुछ जल धरती पी जाती है

कूप बावडी भर जाती है

कुछ पानी बहाकर नदियाँ

सागर को देती जाती है

जल से भाप, भाप से बादल

बादल से जल झर झर झरता

नदियों से सागर को मिलता

जल का चक्कर चलता रहता.

माणिक गोविंद चतुर्वेदी

Short Poem – Time

The butterfly counts not months but moments, and has time enough.

 

Time is a wealth of change, but the clock in its parody makes it mere change and no wealth.

 

 

Let your life lightly dance on the edges of Time, like dew on the tip of a leaf.

 

By: Rabindranath Tagore